[कोविड योद्धा] केवल महिला कर्मियों वाले इस सैमसंग कॉल सेंटर ने कोविड के खिलाफ जंग में जगाई उम्मीद

24-05-2021
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आज से हम आपके सामने सैमसंग इंडिया के कर्मचारियों, इंटर्न्स और साझेदारों की कहानियां पेश करने जा रहे हैं, जिन्होंने मुश्किल भरे इस दौर में अपनी निजी परेशानियों के बावजूद समाज, सहकर्मियों, दोस्तों और परिवारों की मदद के लिए नि:स्वार्थ भाव से काम किया है; जिन्होंने नेतृत्व, टीमवर्क और करुणा का अभूतपूर्व प्रदर्शन किया है। यह श्रृंखला भारत भर में मोर्चे पर सबसे आगे रहने वाले योद्धाओं को समर्पित है और उन सभी को समर्पित है, जो देश में किसी भी जगह किसी को भी मदद पहुंचाने के लिए बिना थके बाहर निकलकर काम करते आए हैं और अपने स्मार्टफोन के जरिये सोशल मीडिया पर मदद करते आए हैं।

 

कोविड-19 की दूसरी लहर ने हर किसी को हक्का-बक्का कर दिया था। यह बहुत तेज और प्रचंड थी तथा इसने देश की आबादी के बड़े हिस्से पर असर डाला। अस्पताल में बेड, ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं की मांग बहुत बढ़ गई। ज्यादातर लोग वाकई मदद करना चाहते थे मगर चारों ओर उपलब्ध और सोशल मीडिया पर साझा की जा रही जरूरत से ज्यादा जानकारी अक्सर रुकावट बन गई क्योंकि ज्यादातर जानकारी गलत या निराधार निकली।

 

सैमसंग इंडिया में महाप्रबंधक (मानव संसाधन) और इस अभियान का नेतृत्व कर रहे अरिंदम लाहिड़ी कहते हैं, “सैमसंग में हमने भारत में अपने 70,000 कर्मचारियों और उनके परिवारों की मदद करने के लिए पूरे देश में सैमसंग कोविड सपोर्ट ग्रुप (हेल्पडेस्क) बनाए। विभिन्न विभागों से कई कर्मचारियों ने स्वेच्छा से उसमें काम संभाला। लेकिन जल्द ही हमारे सामने यह समस्या आई कि ऑक्सीजन या अस्पतालों में आईसीयू बेड, केमिस्ट, ब्लड बैंक, एंबुलेंस, ऑक्सीजन सिलिंडर या ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की आपूर्ति करने वालों की सूचियां तो हजारों थीं मगर अक्सर वे गलत निकलती थीं। कल्पना कीजिए कि जिस समय आप किसी की जिंदगी बचाने के लिए जूझ रहे हैं, उस समय आपके सामने कोई रास्ता ही नहीं हो।”

 

तब टीम ने संपर्कों की इस लंबी सूची का सत्यापन करने और सही सूची तैयार करने के लिए सैमसंग ग्राहक सेवा कॉल सेंटर के सहकर्मियों की मदद लेने का फैसला किया। मगर इसके लिए समय बहुत कम था।

 

लखनऊ की 26 वर्षीय दीपांजलि साहू बताती हैं, “जब मेरे पास मेरे बॉस का फोन आया तो मुझसे कहा गया कि जंग लड़नी है और मुझे एक हफ्ते से भी कम समय में यह सूची तैयार करनी है। काम बहुत बड़ा था और लॉकडाउन की वजह से मैं भी बहुत तनाव में थी मगर यह काम मैं अपने देश के लोगों की मदद के लिए, कई कीमती जानें बचाने के लिए कर रही थी। इस ख्याल ने ही मुझे जोश से भर दिया और मैं तैयार हो गई।”

 

 

दीपांजलि कॉल सेंटर में पांच लोगों की उस टीम में थीं, जिन्हें इस काम के लिए चुना गया था। इस टीम में सभी महिलाएं थीं। उन्हें उस सूची में दिए गए हरेक नंबर को फोन कर जांचना पड़ा, असली और फर्जी नंबर अलग करने पड़े, सही नंबरों पर आपूर्ति की उपलब्धता का ब्योरा अपडेट करना पड़ा, हरेक श्रेणी में अलग सूची बनानी पड़ी और अंत में उन्हें टीमों के साथ साझा किया गया ताकि कर्मचारी, उनके दोस्त और परिवार तथा वे सूचियां पाने वाले सभी लोग उनका इस्तेमाल कर पाएं।

 

टीम दिए गए नंबरों पर फोन शुरू करे, उससे पहले काफी समय और मेहनत प्रत्येक श्रेणी – अस्पताल, ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाले, घर पर दवा पहुंचाने वाले केमिस्ट, कोविड मरीजों को भोजन पहुंचाने वाले लोग, ब्लड बैंक, जांच केंद्र और एंबुलेंस – के लिए विस्तृत प्रश्नावली तैयार करने में लगी।

 

सैमसंग कॉल सेंटर में प्रशिक्षण प्रमुख बंदना चेटिया बताती हैं, “हमारी लड़कियां एकदम नया काम कर रही थीं, जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया था। हमने वे प्रश्न तैयार किए ताकि उन्हें फोन पर मौजूद व्यक्ति का समय बरबाद किए बगैर जल्दी से उत्तर मिल जाएं।”

 

कॉल करने वाली टीम को यह बात शुरुआत में ही समझा दी गई थी और इससे उन्हें उस वक्त शांत रहने में मदद मिली, जब जवाब देने वाले ने अशिष्टता के साथ बात की।

 

कॉल सेंटर टीम में से कुछ के तो अपने ही परिजन देश के दूसरे हिस्सों में कोविड की चपेट में आ गए थे। मगर वे मदद करने के मिशन पर डटी रहीं।

टीम में शामिल पांच कर्मचारियों में से 21 वर्ष की विशाखा तिवारी कहती हैं, “बिहार में मेरी चचेरी बहन को कोविड हो गया था और मैं उसकी तथा परिवार की मदद करना चाहती थी मगर नहीं कर सकी क्योंकि मैं बाहर थी। इससे मुझे कड़ी मेहनत करने और मौका मिलने पर किसी की भी मदद करने की प्रेरणा मिली। आज जब मैं सोचती हूं कि उस सूची से हजारों परिवारों और दोस्तों को मदद मिल रही है तो इस अहसास से मुझे बहुत संतोष मिलता है कि मैं इतने अच्छे काम में शामिल थी।”

 

यह बहुत मुश्किल काम था। डॉक्टर और अस्पताल चाहते थे कि उनसे मुलाकात का समय लिया जाए और वहां जाकर पूरा ब्योरा लिया जाए। एंबुलेंस के कई कर्मचारी फोन उठा लेते थे मगर फौरन काट भी देते थे। कई आपूर्तिकर्ताओं ने कहा कि उनका स्टॉक खत्म हो गया है और उनसे अपडेट लेने के लिए बाद में फोन करने को कहा।

 

23 वर्ष की प्रियंका गुप्ता कहती हैं, “हम उनकी मजबूरी और खीझ समझ सकते थे। हम फ्रंटलाइन वर्कर्स को विवरण की पुष्टि करने के लिए उस समय फोन कर रहे थे, जब वे किसी जरूरतमंद मरीज के फोन का इंतजार कर रहे होंगे।” वह बताती हैं, “लेकिन हमने कई सेवा प्रदाताओं को समय देने के लिए मना लिया क्योंकि हम भलाई का काम कर रहे थे, यह सुनिश्चित कर रहे थे कि जरूरत के वक्त उन्हें फोन करने वाले लोगों के पास सही जानकारी हो। वे इस बात को समझ भी गए। कुछ ने तो तसल्ली के साथ हमें यह तक बताया कि उनका स्टॉक दोबारा कब आएगा।”

 

इन पांचों की कोशिशों से हफ्ते भर में ही पुरानी सूची में दिए गए नंबरों में से केवल 20 प्रतिशत नंबर ही बचे।

 

इस सूची को अब हर हफ्ते सत्यापित और अपडेट किया जा रहा है और देश भर में कर्मचारियों के साथ साझा किया जा रहा है। कर्मचारी आगे इसे अपने दोस्तों, परिजनों के साथ साझा कर रहे हैं और जरूरतमंदों की मदद के लिए सोशल मीडिया पर भी डाल रहे हैं।

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