[कोविड योद्धा] अलीगढ़ में टिफिन कोविड शिविर तक पहुंचाने में अपनी मां की मदद करने वाला युवक है सैमसंग इंटर्न

07-06-2021
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश का भीड़ भरा शहर अलीगढ़ अपने पारंपरिक तालों, एक अग्रणी विश्वविद्यालय और भारत में थर्मोमीटर के सबसे पुराने निर्माताओं में से एक का घर है।

 

शहर में दिन का तापमान बढ़ने के साथ ही 23 साल का एक युवक थैले में टिफिन भरे सड़क पर निकल जाता है। वह जल्दी में है क्योंकि कोविड राहत शिविर में तब्दील कर दिए गए एक वृद्धाश्रम में कुछ बुजुर्ग उसका इंतजार कर रहे हैं। युवक का नाम यश वार्ष्णेय है।

 

यशजीत वार्ष्णेय जब बच्चे थे तब उन्होंने अपने माता-पिता को सड़क पर रहने वाले लोगों को खाना खिलाते और घर के आसपास रहने वाले सभी लोगों के लिए नियमित तौर पर भंडारों का आयोजन करते देखा था।

 

उनकी मां दीपाली वार्ष्णेय हरदम किसी के भी लिए अपनी बड़ी कड़ाही निकालकर प्यार से खाना बनाने को तैयार रहती हैं।

 

जब महामारी की दूसरी लहर शुरू हुई तो इस परिवार को पता चला कि उसके पड़ोसी को कोविड हो गया है और पास के कोविड राहत शिविर में भर्ती करा दिया गया है। लेकिन आठ साल पहले अपनी मां खो चुके उसके दोनों बच्चों – 10 साल के बेटे और 12 साल की बेटी – को खाना खिलाने वाला भी कोई नहीं है।

 

यशजीत बताते हैं, “मेरी मां को जैसे ही यह पता चला, उन्होंने तुरंत बच्चों के लिए घर पर पोहा बनाया और मुझे थोड़ा भोजन शिविर में उनके पिता के लिए ले जाने को भी कहा।”

 

जब यशजीत शिविर पहुंचे तो उन्हें ख्याल आया कि दूसरे मरीज, जिनमें से कई बहुत गरीब थे, खाने का इंतजाम कैसे कर रहे होंगे। वहां के कर्मचारियों ने उन्हें बताया के वे लोग कुछ इंतजाम करने की कोशिश कर रहे हैं मगर गर्म और पोषण भरा घर का खाना नहीं मिल पाता।

 

 

तब यश को लगा कि उन्हें और उनकी मां को इन मरीजों के लिए अधिक भोजन बनाना होगा।

 

महीने भर पहले सैमसंग में बतौर इंटर्न काम शुरू करने वाले यशजीत कहते हैं, “हमेशा की तरह मेरे माता-पिता को यह बात बहुत पसंद आई।” वर्क फ्रॉम होम के जरिये घर से ही इंटर्नशिप करते समय भी यश का खाना पहुंचाने का काम जारी है।

 

उनकी मां एक बार में 10-15 लोगों के लिए हल्का और पोषक भोजन तैयार करती हैं। यशजीत उसे सफाई से छोटे डिब्बों में पैक करते हैं और कोविड राहत शिविर में मरीजों तक पहुंचा देते हैं। यह काम वह सैमसंग इंडिया में बिजनेस लीडर्स के साथ वर्चुअल बैठकों के बीच ही कर डालते हैं।

 

वह कहते हैं, “लोगों की मदद करने और वह भी ऐसे वक्त में करने पर कैसा लगता है, यह शब्दों में नहीं बताया जा सकता।”

 

शुरू में भोजन पहुंचाते समय यशजीत को भी कोरोना संक्रमण हो गया मगर उनके माता-पिता ने हार नहीं मानी। वह बताते हैं, “वे तो मुझे प्रेरित करते रहे और जैसे ही मैं ठीक हुआ, हमने खाना पहुंचाने का अपना काम एक बार फिर शुरू कर दिया।”

 

यशजीत कहते हैं कि लोगों को महत्व देना और उनकी तकलीफ समझना उन्होंने अपने माता-पिता से ही सीखा है तथा इससे उन्हें वह शख्स बनने में मदद मिली है, जिसे आज आप देख रहे हैं।

 

उनके ये मूल्य ही असल में सैमसंग के बुनियादी मूल्य हैं – लोगों (पीपल) के लिए काम करना और साथ-साथ समृद्धि (को-प्रॉस्पेरिटी) हासिल करना।

 

बिजनेस स्कूल एमडीआई, गुड़गांव में प्रथम वर्ष के छात्र यशजीत कहते हैं, “मेरे लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। शेयरिंग यानी आपस में बांटना को मेरे परिवार का जीने का तरीका ही है। और इसी वजह से मुझे सैमसंग में घर जैसा महसूस होता है। मुझे याद है, जब मैंने अपना पहला मोबाइल फोन खरीदा था तब मैंने पढ़ा था कि पीपल और को-प्रॉस्पेरिटी सैमसंग के बुनियादी मूल्य हैं। और मैंने खुद से कहा कि अगर कभी मुझे इस ब्रांड के साथ काम करने का मौका मिला तो कितना सही होगा।”

 

 

 

 

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