[क्विक टेक] बनाइए एक डूडल- खुद अपने गैलेक्सी नोट सेः अरविंद पासे
हमारे पास आज के दौर की अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी जो मौजूद है, वह है कल्पना-शक्ति। इसके साथ ही दूसरा सच यह भी है कि आज के दौर की टेक्नोलॉजी भी उतनी ही कल्पनाशील है… और इसीलिए जाहिर तौर पर टेक्नोलॉजी के कल्पनाशील इस्तेमाल पर किसी लॉकडाउन का असर नहीं हो सकता, यदि कोई अपनी कल्पना-शक्ति में थोड़ी सी टेक्नोलॉजी भी जोड़ दे!
मेरे अंदर बैठा जो डूडलर है, वह हमेशा इंतजार करता रहता है कि कब मौका मिले और वह छलांग लगाकर मेरे भीतर बिखरे अनेकों विचारों के साथ संवाद कर सके और उन्हें इस बात के लिए राजी कर सके कि उन्हें भी किसी सार्थक डूडल के तौर पर उकेरा जा सकता है। और इसलिए इस लॉकडाउन के दौर में मैं कभी तो खुद को ब्लॉग के रूप में अक्षरों के साथ खेलता पाता हूं, कभी अपने विचारों को पॉडकास्ट के छोटे-छोटे समूहों में परिवर्तित करता हूं (वे फिलहाल आगे बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं) और कभी गैलेक्सी नोट के विशाल स्क्रीन पर अठखेलियां करते एस-पेन से कुछ आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचता हूं और उनमें रंग भरता हूं।
एक बार एक दोस्त ने मुझसे पूछा, ‘यह कठिन नहीं है?’, और फिर जोड़ा, ‘मैं तो जितना बनाता हूं, उससे ज्यादा मिटाता ही हूं, जिसका नतीजा यह होता है कि वह पेज मेरे अनुमान से जल्दी ही फट कर बेकार हो जाता है।’
हम्म…. मैंने उससे कहा कि मेरा पेज तो होकर भी नहीं होता क्योंकि वह डिजिटल दुनिया से आता है और कभी बेकार नहीं होता, यदि सचमुच इससे कुछ फर्क पड़ता है। फिर मैंने उसे बताया कि वैसे तो उंगली के टच से भी काम हो जाता है, लेकिन एक कलाकार के लिए निर्वाण की अनुभूति तो बस एस-पेन से ही आ सकती है।
मेरे लिए तो जिंदगी बस वही है जो मेरे एस-पेन के उस हिस्से से निकलती है जो मैं स्क्रीन पर लगाता हूं… और मेरे हाथों में यह कुछ उसी तरह होता है, जैसा कि हैरी पॉटर के लिए जादूगर की छड़ी। मेरी जादू की यह छड़ी घूमती है और कहीं आकाश से ले आती है दर्जनों रंग, वाटर कलर, ऑयल पेंट, चॉक, चारकोल, पेंसिल, पेन, मार्कर, ब्रश, रोलर, पैलेट नाइव्स, टोन्स और टेक्सचर्स। उसी आकाश से कई सिमेट्री, स्ट्रोक और गाइड भी प्रकट होते हैं, जो मुझे मेरी कलाकारी में मदद देते हैं। मुझे बस अपनी कल्पना और गैलेक्सी नोट की टेक्ननोलॉजी को एक साथ अपना काम करने को छोड़ देना होता है। मैंने कहा, ‘टेक्नोलॉजी की ताकत मेरी कल्पनाशक्ति में नए जीवन का संचार कर देती है।’
जहां तक लॉकडाउन में मेरी दिनचर्या का सवाल है, मुझे कहना होगा कि मैंने ऐसी कोई दिनचर्या बनाई ही नहीं है। मैंने ये महसूस किया है कि समय के प्रवाह में बहते रहना ही सबसे ज्यादा अभिभूत करने वाला अनुभव है जो यहां है… इसीलिए मैं पूरे विश्वास से यह कहने में समर्थ हुआ कि दिल्ली के ऊपर का आसमान अब पहले से कहीं ज्यादा साफ और नीला है। एक शाम जब मैं सेंट्रल दिल्ली में गोल मार्केट के निकट अपने सातवें तल के टैरेस पर खड़ा था, तभी मैंने अपने कैमरे को चारों ओर घुमा कर कई तस्वीरें भी खींची… और उसी समय मुझे महसूस हुआ कि एक सामान्य जूम कर मैं कुतुब मीनार देख पा रहा था जो कि वहां से सीधी रेखा में लगभग 14 किमी है। चमत्कार, है न?
हमारी जिंदगी में हमेशा कोई न कोई ऐसा क्षण मौजूद होता है, जब हम उसमें पूरी गहराई से डूब सकते हैं। आवश्यकता होती है बस उस क्षण को बुलाने और गले से लगा लेने की। मेरा विश्वास है कि यह जितना ज्यादा हो सके, उतनी जिम्मेदारियों को गले लगाने और उतने नए कौशल सीखने का वक्त है क्योंकि इसी से हमें आखिरकार यह समझने में मदद मिलेगी कि हम किसे ताउम्र अपनी जिंदगी का हिस्सा बना कर रखना चाहते हैं।
[अरविंद पासे एजुकेशन पोस्ट के संपादक हैं और टेक्नोलॉजी, ट्रैवल और पर्यावरण सहित कई मुद्दों पर लिखते हैं। उनकी छोटी कहानियां और कविताएं ब्रिटेन और भारत के कई जर्नल, एंथोलॉजी और पत्रिकाओं में छपते हैं। उन्होंने सैमसंग न्यूजरूम भारत के अनुरोध पर यह लेख लिखा है।]
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