[वीकेंड रीड] अजय बिजली की पसंदीदा मूवी लिस्ट
अजय बिजली पीवीआर सिनेमाज के मालिक हैं और सैमसंग के पार्टनर भी। दिल्ली में उनके एक थियेटर में ही पहली बार सैमसंग ओनिक्स सिनेमा एलईडी स्क्रीन इंस्टॉल किया गया था, जो पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल होने वाले प्रोजेक्टर आधारित स्क्रीन की जगह एलईडी स्क्रीन के साथ अब सिनेमा प्रेमियों के फिल्म देखने के अनुभव को एक नया आयाम दे रहा है।
इन दिनों हममें से ज्यादातर लोग ऑफिस का काम घर से ही कर रहे हैं, लेकिन जैसी कहावत है कि दुनिया कभी रुकती नहीं। और ईश्वर करे, हमारे स्मार्ट टीवी इस सफर में हमेशा हमारे सहयात्री बने रहें!
हमने अजय से पूछा कि कि वह हमारे पाठकों और उपभोक्ताओं को घर पर रहने के दौरान अपनी कौन सी पसंदीदा फिल्में देखने की सिफारिश करेंगे।4
उन्होंने सैमसंग न्यूजरूम को ये बतायाः
मैं मूवीज के कारोबार में हूं, क्योंकि मैं फिल्में पसंद करता हूं। बस इतनी सी बात है!
इसलिए इस बारे में ज्यादा ज्ञान बघारे बिना मैं सीधे अपनी पसंदीदा फिल्मों की लिस्ट बताता हूं और साथ ही थोड़े में यह भी बताउंगा कि मैं उन्हें क्यों पसंद करता हूं।
‘द गॉडफादर’; यह मूवी क्यों अब तक की सबसे महान और प्रभावशाली फिल्म मानी जाती है, इसके कई कारण हैं। फ्रांसिस फोर्ड कोपोला का निर्देशन, मार्लन ब्रांडो का बेजोड़ अभिनय, सात बार अकादमी पुरस्कारों के लिए नामांकन और उनमें तीन श्रेणियों में मिली जीत, एक गैंगस्टर परिवार और उसकी भलमनसाहत की कहानी का विशद विस्तार और व्यापक स्कोप, माफिया विचारधारा में गहरी धंसी इस फिल्म को अभूतपूर्व बना देते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि इसका सीक्वेल (और कुछ हद तक पहले की भी कहानी) ‘द गॉडफादर पार्ट II’ इससे भी बेहतर थी! इसे ग्यारह श्रेणियों में ऑस्कर के लिए नामित किया गया था और उनमें से छह में इसने जीत हासिल की। इनमें पहली बार एक सीक्वेल के लिए सर्वश्रेष्ठ सिनेमा का पुरस्कार भी शामिल था।
‘शोले’ के बारे में कोई तारीफ के सिवा और क्या कर सकता है। यह एक ऐसी फिल्म है जिसका हर किरदार असाधारण है और अपनी अद्भुत विशेषताओं के कारण यह एक तरह से भारत की सांस्कृतिक लोकोक्ति का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। बसंती (हेमा मालिनी) की लगातार चलती जबान से निकलने वाले अनथक मनगढ़न्त किस्सों से लेकर डकैत गब्बर सिंह (अमजद खान) के शाश्वत प्रश्न,“कितने आदमी थे?”, ने पता नहीं लेखकों, अभिनेताओं और आम लोगों की कितनी पीढ़ियों की अंतरतम कलाकार वृत्तियों को झकझोरा है। दोस्ती, प्यार और दुश्मनी के एक सर्वोत्कृष्ट कथानक के माले में गूंथकर इस फिल्म ने स्क्रीन पर सितारों का एक जमावड़ा खड़ा कर दिया था। सिनेमा देखने का एक बेहतरीन अनुभव। इसी श्रृंखला में मैं ’द ग्लैडिएटर,’ और ‘बुच कैसिडी एंड द सनडांस किड’ भी पसंद करता हूं – इनमें पहला जहां एक तनहा ग्लैडिएटर की महाकथा है जिसमें उदासी और विषाद से भरे रसेल क्रो ने मुख्य भूमिका अदा की थी, वहीं दूसरी 1880 के दशक के दो वाइल्ड वेस्ट अपराधियों की जिंदगियों पर आधारित तथ्यात्मक फिल्म थी। दोनों ही दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर स्वयं में तल्लीन कर लेने वाली मूवीज हैं।
मेरे मन में ‘अवतार’, ‘द टेन कमांडमेंट्स’, ‘इनसेप्शन’, ‘डनकिर्क’ जैसी मंचीय उत्कृष्ट कृतियों और ‘इंडियाना जोन्स: रेडर्स ऑफ द लॉस्ट आर्क’ की मजेदार मस्ती के लिए भी काफी प्रशंसनीय भाव हैं।
और आखिर में, बिना किसी मिलावट वाले खालिस मजे के लिए मैं ‘द पिंक पैंथर’ में पीटर सेलार्स के अनाड़ी छिछोरेपन को, ‘चुपके चुपके’ में धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर द्वारा ओम प्रकाश को बेवकूफ बनाने की प्यारी हरकतों को, ‘अंदाज अपना अपना ’ में सलमान और आमिर के दीवानेपन को और ‘डर्टी रॉटेन स्काउंड्रल्स’ में हरदिल अजीज माइकल केन और सख्त और असभ्य स्टीव मार्टिन को दो ठगों के रूप में खत्म होने की कगार पर खड़े फ्रेंच रिवेरा के पीछे पड़े देखना पसंद करूंगा।
मुझे उम्मीद है कि आपको भी इन फिल्मों में उतना ही मजा आएगा, जितना मुझे इन्हें देखते वक्त आया!
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